यह पलाश के फूलने का समय है (कविता)

(1)
जंगल में कोयल कूक रही है
जाम की डालियों पर
पपीहे छुआ-हुई खेल रहे हैं
गिलहरियों की धमा-चौकड़ी
पंडुकों की नींद तोड़ रही है
यह पलाश के फूलने का समय है

यह पलाश के फूलने का समय है
उनके जूड़े में खोंसी हुई है
सखुए की टहनी
कानों में सरहुल की बाली
अखड़ा में इतराती हुईं वे
किसी भी जवान मर्द से कह सकती हैं
अपने लिए एक दोना
हड़ियाँ का रस बचाए रखने के लिए
यह पलाश के फूलने का समय है

यह पलाश के फूलने का समय है
उछलती हुईं वे
गोबर लीप रही हैं
उनका मन सिर पर ढोए
चुएँ के पानी की तरह छलक रहा है
सरना में पूजा के लिए
साखू के पत्तों पर वे बाँस के तिनके नचा रही हैं
यह पलाश के फूलने का समय है।

(2)
यह पलाश के फूलने का समय है
रेत पर बने बच्चों के घरौंदों से
उठ रहा है धुआँ
हवाओं में घुल रहा है बारूद
चट्टानों से रिसते पानी पर
सूरज की चमक लाल है और
जंगल की पगडंडियों में दिखाई पड़ता है दंतेवाड़ा
यह पलाश के फूलने का समय है

यह पलाश के फूलने का समय है
नियमगिरि से निकले नदी के तट पर
केंदू पक कर लाल है
हट चुकी है मकड़े की जाली
गुफाओं की ख़बर है
खदानों में वेदांता का विज्ञापन टँगा है
साखू के सागर सारंडा की लहरों में
बिछ गई है बारूदी सुरंगें
हर दस्तक का रंग यहाँ लाल है

यह पलाश के फूलने का समय है
दूर-दूर तक जंगल का
हर कोना पलाश है
साखू पलाश है
केंदू पलाश है
सागवान पलाश है
पलाश आग है
आग पलाश है
जंगल में पलाश के फूल को देख
आप भ्रमित हो सकते हैं कि
जंगल जल रहा है
जंगल में जलती आग को देख
आप क़तई न समझें पलाश फूल रहा है
यह पलाश के फूलने का समय है
और जंगल जल रहा है।


रचनाकार : अनुज लुगुन
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