साहित्य रचना : साहित्य का समृद्ध कोष
संकलित रचनाएँ : 3561
गोण्डा, उत्तर प्रदेश
1947 - 2011
ये समझते हैं खिले हैं तो फिर बिखरना है, पर अपने ख़ून से गुलशन में रंग भरना है। उससे मिलने को कई मोड़ से गुज़रना है, अभी तो आग के दरिया में भी उतरना है। जिसके आने से बदल जाए ज़माने का निज़ाम, ऐसे इंसान को इस ख़ाक से उभरना है। बह रहा दरिया इधर एक घूँट को तरसे, उदय प्रताप जी वादे से ये मुकरना है।
अगली रचना
पिछली रचना
साहित्य और संस्कृति को संरक्षित और प्रोत्साहित करने के लिए सामूहिक प्रयास की आवश्यकता होती है। आपके द्वारा दिया गया छोटा-सा सहयोग भी बड़े बदलाव ला सकता है।
रचनाएँ खोजने के लिए नीचे दी गई बॉक्स में हिन्दी में लिखें और "खोजें" बटन पर क्लिक करें