साहित्य रचना : साहित्य का समृद्ध कोष
संकलित रचनाएँ : 3561
गोरखपुर, उत्तर प्रदेश
1896 - 1982
ये तो नहीं कि ग़म नहीं, हाँ मिरी आँख नम नहीं। नश्शा सँभाले है मुझे, बहके हुए क़दम नहीं। कहते हो दहर को भरम, मुझ को तो ये भरम नहीं। और ही है मक़ाम-ए-दिल, दैर नहीं हरम नहीं। तुम भी तो तुम नहीं हो आज, हम भी तो आज हम नहीं। क्या मिरी ज़िंदगी तिरी, भूली हुई क़सम नहीं। 'ग़ालिब'-ओ-'मीर'-ओ-'मुसहफ़ी', हम भी 'फ़िराक़' कम नहीं।
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