कृष्ण की नियति से
तुम्हारा ऋणात्मक योग था
योगमाया!
तुम्हें विनिष्ट होना था
लीला-पुरुष की लीलाओं में
योग-माया तुम्हें उड जाना था,
समय-कंस के हाथ से
फेलोमिना की तरह
कैसे जी सकती थीं तुम?
योगिराज के समानांतर
योगमाया!
अब समय कुछ कहे,
या इतिहास कुछ गहे
योगमाया होती गर तुम भगवती का स्वरूप
इतिहास उलट गया होता!
साहित्य और संस्कृति को संरक्षित और प्रोत्साहित करने के लिए सामूहिक प्रयास की आवश्यकता होती है।
आपके द्वारा दिया गया छोटा-सा सहयोग भी बड़े बदलाव ला सकता है।