ज़रूरतें (कविता)

पहले तय होंगी उनकी ज़रूरतें
फिर मेरा गुनाह
मेरी सज़ा तय होगी

पुत्र जन्म की ख़ुशी में
पुरोहितों के लिए मांस की ज़रूरत होगी, डफली के लिए
चाम की
एक तीर मेरा पीछा रकेगा
चाहे लाख तेज़ भागूँ मैं
चाहे लाख आँसू धार बहाए मेरी हिरणी—
मारा जाऊँगा

चाकरी बजाएगा
उनके आँगन के बीचोबीच मेरी चिता सजाएगा
मेरी आँच, मेरा धुआँ, मेरी राख तक का होगा
बख़ूबी इस्तेमाल
और तमाम नए रंगों, तमामा ख़ुश्बू से रिझाएँगे
सोलह शृंगारों से सजे उनके बाज़ार

वे बार-बार दुहराएँगे अपनी ज़रूरतें
बार-बार तय होगा मेरा गुनाह
मेरी सज़ा...।


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