साहित्य रचना : साहित्य का समृद्ध कोष
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कोहाट, ख़ैबर-पख़्तूनख़्वा
1931 - 2008
ज़िंदगी से यही गिला है मुझे तू बहुत देर से मिला है मुझे तू मोहब्बत से कोई चाल तो चल हार जाने का हौसला है मुझे दिल धड़कता नहीं टपकता है कल जो ख़्वाहिश थी आबला है मुझे हम-सफ़र चाहिए हुजूम नहीं इक मुसाफ़िर भी क़ाफ़िला है मुझे कोहकन हो कि क़ैस हो कि 'फ़राज़' सब में इक शख़्स ही मिला है मुझे
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